आज हम एक स्वतंत्र देश में रहते हैं और अपने चुनाव प्रणाली व लोकतंत्र की ना जानें कितनी खामियां निकालते हैं लेकिन जब आप अतीत में झांकेंगे या उन पर विचार करेंगे तो इसे ज़रूर से अविश्वसनीय उपलब्धि के रूप में पाएंगे। हम आज अपनी सरकार खुद चुन सकते हैं, यह भाव तब ज़रूर से रोमांच पैदा करने वाला रहा होगा। देखा जाए तो वास्तविक में आजादी के बाद हमारा पहला आम चुनाव इसी रोमांचकता के सामूहिक मनोविज्ञान में संपन्न हुआ था। उस समय के समाचारों, नेताओं के भाषणों आदि को देखें तो आपको इस मनोविज्ञान का अहसास आसानी से हो जाएगा।
नवस्वतंत्र देश का लोकतंत्रीकरण यानी कि पूरा उत्सव का माहौल चारों ओर औऱ इस भाव से सराबोर पूरा भारतीय समाज मानो अंग्रेजों को झुठलाने तथा दुनिया को लोकतंत्र के लिए अपनी काबिलियत साबित कर रहा हो… यह वही समाज था जिसे अंग्रेजों ने ऐसा समाज कहा था – “जो लोकतंत्र को ना पचा पाएगा, ना इसे संभालकर आगे बढ़ा पाएगा”… लोकसभा की 497 तथा राज्य विधानसभाओं की 3283 सीटों के लिए भारत के 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाताओं का निबंधन हुआ। जिनमें से 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने, जिनमें करीब 85 फीसद निरक्षर थे, अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करके पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया।
आम चुनाव की पहली तारीख –
25 अक्टूबर, 1951 से 21 फरवरी, 1952 तक यानी कि लगभग चार महीने चली उस चुनाव प्रक्रिया ने भारत को एक नए मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया था। हमारा भारत भले ही अंग्रेजों द्वारा लूटा-पीटा गया हो, अनपढ़ बनाया गया, कंगाल देश जरूर था, लेकिन इसके बावजूद इसने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़ा कर दिया था।
बता दें कि पहले आम चुनाव के समय कांग्रेस की पहचान ज़रूर से थी व उसकी स्वीकार्यता भी व्यापक थी, लेकिन विपक्ष पार्टी भी वजूद में आ चुके थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तो पहले से थी ही, जयप्रकाश नारायण डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में सोशलिस्टों का धड़ा भी कांग्रेस से बाहर आकर सोशलिस्ट पार्टी बना चुका था।
इसके अलावा जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल के ही दो पूर्व सहयोगियो ने भी कांग्रेस के खिलाफ दो पार्टियों की शुरुआत कर दी थी। जहां, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी तो वहीं, दूसरी ओर डॉ. भीमराव आंबेडकर ने शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन को पुनर्जीवित कर दिया था… जो बाद में रिपब्लिकन पार्टी के नाम से जाना गया। यही नहीं, वरिष्ठ स्वाधीनता सेनानी आचार्य जीवतराम भगवानदास (जेबी) कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा परिषद का गठन कर लिया था जैसे कि भारतीय क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी, बोल्शेविक पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक के दो समूह, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, हिंदू महासभा, अखिल भारतीय रामराज्य परिषद आदि। इस खास चुनाव मे कुल 53 पार्टियों ने भाग लिया था जिनमें 14 राष्ट्रीय स्तर की और बाकी राज्य स्तर की पार्टियां मौजूद थीं।